गाँधी जी के अनुसार सत्य और अहिंसा क्या है ? Satya aur ahinsha in Hindi

13 Deepak

गाँधी जी के अनुसार सत्य और अहिंसा क्या है ?

महात्मा गांधी ने अपने जीवन में सत्य और अहिंसा को सबसे महत्वपूर्ण सिद्धांत माना। उन्होंने न केवल भारत को स्वतंत्र कराने में इन सिद्धांतों का प्रयोग किया, बल्कि पूरी दुनिया को इन मूल्यों का महत्व समझाया। उनका मानना था कि सत्य और अहिंसा ही जीवन की सच्ची सफलता की कुंजी हैं।

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महात्मा गांधी जी का जीवन परिचय

मोहनदास करमचंद गांधी का जन्म 2 अक्टूबर, 1869 को गुजरात के पोरबंदर में हुआ था। वे इंग्लैंड से कानून की पढ़ाई कर भारत लौटे और वकालत करने लगे। परंतु जल्द ही वे भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन से जुड़ गए। उन्होंने सत्य और अहिंसा के मार्ग पर चलकर अंग्रेजी हुकूमत को चुनौती दी और भारत को स्वतंत्रता दिलाने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई। उनका निधन 30 जनवरी, 1948 को एक हमले में हुआ।

सत्य का महत्व

गांधी जी के अनुसार, "सत्य केवल वाणी में नहीं, विचार और कर्म में भी होना चाहिए।" सत्य का अर्थ है अस्तित्व – यानी जो है, वही सत्य है। वे कहते थे कि ईश्वर का सच्चा नाम "सत्य" है। सत्य की साधना करते हुए व्यक्ति न केवल समाज में आदर्श बनता है, बल्कि आत्मिक उन्नति भी प्राप्त करता है।

अहिंसा का वास्तविक अर्थ 

गांधी जी के लिए अहिंसा का अर्थ केवल किसी को न मारना नहीं था, बल्कि किसी को सोच, बोलचाल या व्यवहार से भी कष्ट न पहुँचाना ही असली अहिंसा है। "अहिंसा केवल बाहरी कार्य नहीं, यह आंतरिक शुद्धता का प्रतीक है।" वे मानते थे कि क्रोध, द्वेष, झूठ, लालच – ये सभी हिंसा के ही रूप हैं। इनसे मुक्त होकर ही हम सच्चे अहिंसक बन सकते हैं।

सत्य और अहिंसा का आपसी संबंध क्या है?

गांधी जी के अनुसार, "यदि सत्य साध्य है तो अहिंसा उसका साधन है।" वे मानते थे कि इन दोनों को अलग नहीं किया जा सकता। सत्य और अहिंसा एक ही सिक्के के दो पहलू हैं। कोई भी व्यक्ति यदि इन दोनों गुणों को अपनाता है, तो वह सच्चे अर्थों में मनुष्य बनता है।

गाँधी जी के विचारों की आज के संदर्भ में प्रासंगिकता

आज के समय में जब हिंसा, असत्य और स्वार्थ की प्रवृत्तियाँ समाज में बढ़ती जा रही हैं, तब महात्मा गांधी के सत्य और अहिंसा के सिद्धांत पहले से कहीं अधिक प्रासंगिक हो जाते हैं। उन्होंने जो जीवन दर्शन प्रस्तुत किया, वह केवल एक काल विशेष तक सीमित नहीं, बल्कि यह शाश्वत है। यदि आज की युवा पीढ़ी गांधी जी के विचारों को अपनाए, तो न केवल व्यक्तिगत जीवन में सुधार होगा, बल्कि सामाजिक और राष्ट्रीय जीवन भी अधिक शांतिपूर्ण और समरस हो सकेगा।

गांधी जी ने सत्य को ही परमेश्वर माना और अहिंसा को सत्य तक पहुँचने का मार्ग। उन्होंने कभी भी अपने विरोधियों से द्वेष नहीं किया, बल्कि प्रेम और सहानुभूति के माध्यम से उन्हें परिवर्तन के लिए प्रेरित किया।


शिक्षा और युवाओं के लिए संदेश

गांधी जी मानते थे कि शिक्षा केवल डिग्री प्राप्त करने का माध्यम नहीं, बल्कि यह चरित्र निर्माण का भी साधन है। उन्होंने शिक्षा को नैतिकता और सेवा के साथ जोड़ा। आज की शिक्षा प्रणाली में यदि गांधीवादी मूल्यों को शामिल किया जाए, तो एक नई पीढ़ी तैयार की जा सकती है, जो न केवल बुद्धिमान हो, बल्कि संवेदनशील और समाज के प्रति उत्तरदायी भी हो।

युवाओं को चाहिए कि वे सोशल मीडिया और तकनीक के युग में भी सत्य और अहिंसा के रास्ते पर चलें। असत्य और हिंसा केवल क्षणिक समाधान प्रदान कर सकते हैं, परन्तु दीर्घकालिक शांति और संतोष केवल सत्याचरण और अहिंसात्मक व्यवहार से ही प्राप्त होता है।

निष्कर्ष 

महात्मा गांधी का जीवन हमें सिखाता है कि बिना सत्य और अहिंसा के जीवन अधूरा है। उनका मानना था कि इन मूल्यों को केवल भाषणों में नहीं, बल्कि व्यवहार में अपनाना चाहिए। ये मूल्य न केवल व्यक्ति को श्रेष्ठ बनाते हैं, बल्कि समाज में भी शांति, प्रेम और एकता फैलाते हैं।

आपने क्या सीखा ?

इस लेख में आपने जाना कि गांधी जी के अनुसार सत्य और अहिंसा का क्या महत्व है। उनके जीवन में इन सिद्धांतों की भूमिका कितनी अहम थी। सत्य को कैसे जिया जाए और अहिंसा को कैसे अपनाया जाए। गांधी जी ने सत्य को परमेश्वर और अहिंसा को उसका मार्ग बताया।

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